दलित संगठनों द्वारा 2 अप्रैल को बुलाए गए भारत बंद के दौरान और बाद में बीजेपी शासित राज्यों में दलितों के ऊपर हुए पुलिस और दबंग लोगों के अत्याचारों के सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियोस से स्पष्ट हो जाता है कि सचमुच में ही इस देश में दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए ऐस.सी. ऐस. टी. अट्रोसिटी एक्ट जैसे कानून की आवश्यकता है।
वायरल वीडियोस में दबंगों और पुलिस को ना केवल दो-दो, चार-चार दलित लड़को के ग्रुपस को बेरहमी से पीटते हुए बल्कि उनके साथ साथ डॉ. भीमराव अंबेडकर को भद्दी भद्दी जातिसूचक गालियां देते सुना जा सकता है। लज्जाजनक वीडियोस में दबंगों और पुलिस को स्वयं तोड़फोड़ करते हुए भी दिखाया गया है। और यह सब केवल उन्हीं राज्यों में हुआ जहां पर बीजेपी की सत्ता है। उन राज्यों में जहां पर अन्य दलों की सरकारें हैं वहां से ऐसी किसी घटना का विवरण नहीं है । ज़ुल्म इस हद तक हुए और हो रहे हैं कि मजबूर हो कर कभी न बोलने वाले बीजेपी के दलित सांसदों को लिखित शिकायत द्वारा प्रधान मंत्री को सीधे हस्तक्षेप का आह्वान करना पड़ गया।
आखिर इसका कारण क्या है। और यह जातिगत घृणा केवल हिंदूवादी विचारधारा से प्रभावित राज्यों में ही क्यों। बहुत से लोगों का उत्तर होगा कि यह घृणा आरक्षण के कारण है। किंतु आरक्षण का प्रभाव तो पूरे देश में है। फिर भारतबंद का असर पंजाब जैसे राज्यों में संपूर्ण और शांतिपूर्ण कैसे रहा। वास्तविकता तो यह है कि दबंग लोग अपनी सदियों पुरानी रूढ़िवादी मानसिकता से नहीं बाहर आ पा रहे। आज भी वह निरक्षरता और अर्ध-साक्षरता के कारण पंडों और पोंगापंथियों के गुलाम हैं। आरक्षण तो पिछले कुछ दशकों से ही शुरु हुआ है। यह घृणा तो सदियों पुरानी है। पंडों के प्रभाव में सदियों से 'ढोल गवार शुद्र पशु नारी, यह सब ताड़न के अधिकारी' जैसे श्लोकों को रटते आये लोग इस घृणा को नहीं पालेंगे तो क्या करेंगे। पंजाब जैसे राज्य में जहाँ पंडों का प्रभुत्व पहले से ही ख़त्म है वहां ऐसी घृणा देखना मुश्किल है। पंडों और पोंगापंथियों के प्रभाव में यह घृणा तब तक चलती रहेगी जब तक अगड़ा हिन्दू समाज संपूर्ण साक्षरता एवं विकास के लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेता।
पिछले 70 सालों में देश की सरकारों ने जनता की शिक्षा को, खास तौर पर अगड़े समाज की संपूर्ण शिक्षा को, प्राथमिकता ना दिए जाने के कारण समाज आज तक रूढ़ियों में फंसा है और व्यक्तियों को जाति के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है। अभी कल ही प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के सभी सांसदों को अपने अपने क्षेत्र में जाकर दलितों के साथ कुछ दिन बिताने का सुझाव दिया है। यह सुझाव वोट हित में तो कारगर हो सकता है किंतु देश हित में तभी कारगर होगा जब यह सब सांसद अपने अपने क्षेत्र में प्रभु वर्ग के लोगों के साथ बैठकर उन्हें कुछ सलाह दें जिससे कि वे रूढ़ियों से बाहर आ सकें। गरीब और प्रताड़ित लोगों को परामर्श देने से पहले अगड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा और परामर्श की नितांत आवश्यकता है ।
लेकिन ऐसे हालात में जब देश के IIT जैसे संस्थानों में विद्यार्थीओं को वेदअध्ययन की प्रेरणा दी जा रही हो, भूवैज्ञानिकों को सरस्वती नदी की खोज में और पुरातत्वविदों को रामायण युग साक्ष्य खोजने में लगाया जा रहा हो, ऐसा कुछ भी होना संभव प्रतीत नहीं होता। जबकि हम सबको पता है कि वेदों के युग में कामगार लोगों को कुछ भी पढ़ने या सुनने की आज्ञा नहीं थी मगर फिर भी उन लोगों की उपलब्धियां विश्व प्रसिद्ध थी। अभी आज के ही हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार एक अध्ययन में पाया गया है कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सीखने की क्षमता SC/ST विद्यार्थियों में औरों के मुकाबले अधिक होती है।
अंत में यही कहेंगे कि यदि दलित भारत बंद के आवाहन के लिए जिम्मेदार हैं तो हिंसा का तांडव करने में रूढ़िवादी सोच का योगदान भी कम नहीं है। जिस पर समय रहते काबू ना पाया गया तो देश कट्टरता का शिकार हो कर मध्य-पूर्व राष्ट्रों की राह पर चला जाएगा।